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कविता

नन्ही मुनिया छुई-मुई

फहीम अहमद


नन्ही मुनिया छुई-मुई।

दिन भर तितली जैसी उड़ती
घर-आँगन चौबारे में।
मुँह बिचकाती, खूब हँसाती
करती बात इशारे में।
मम्मी अगर जरा भी डाँटें
रोने लगती उई-उई।

रोज सवेरे चार जलेबी
बड़े चाव से खाती है।
चीनी वाला दूध गटागट
दो गिलास पी जाती है।
दूध जलेबी न हो समझो

आज मुसीबत खड़ी हुई।

दादी के कंधे चढ़ जाती
कहती चल रे चल घोड़े।
टिकटिक दौड़ लगा दे जल्दी
वरना मारूँगी कोड़े।
दादी उसको पुचकारें तब
चल नटखट शैतान, मुई।

 


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